2017 में धारा 498A पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन-
सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की पीठ ने यह गाइडलाइन "राजेश शर्मा विरुद्ध उत्तर प्रदेश राज्य" (2017) के मामले में दी जिसके प्रमुख बिंदु निम्न प्रकार से हैं-
1. हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति स्थापित की जाएगी जिसमें 3 सदस्य होंगे। परिवार कल्याण समिति की स्थापना district legal service authority करेगी।
2. पुलिस और मजिस्ट्रेट धारा 498A के अंतर्गत प्राप्त होने वाली प्रत्येक शिकायत को सबसे पहले उस समिति के पास भेजेंगे।
3. शिकायत प्राप्त होने के बाद 1 महीने की अवधि में समिति अपनी रिपोर्ट शिकायत भेजने वाले अधिकारी को देगी।
4. जब तक समिति रिपोर्ट नहीं देगी शिकायतकर्ता के पति या उसके रिश्तेदार की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
5. जांच अधिकारी और मजिस्ट्रेट उस रिपोर्ट के अनुसार आगे कार्रवाई करेंगे।
6. यदि पक्षकारों के बीच समझौता होता है तो जिला न्यायाधीश कार्यवाही को बंद कर सकता है।
धारा 498A पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस (2018)-
1. परिवार कल्याण समिति एक extra judicial authority है जो कि पुलिस और मजिस्ट्रेट की तरह शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकती है।
2. धारा 498A का मामला अजमानतीय और संज्ञेय है अतः पुलिस अभियुक्त को बिना के वारंट गिरफ्तार कर सकती है,यदि उपयुक्त कारण हो तो पुलिस अभियुक्त को शिकायत प्राप्त होते ही गिरफ्तार कर सकती है लेकिन पुलिस को सीआरपीसी धारा 41 का पालन करना होगा।
3. जमानत या अग्रिम जमानत देने की शक्ति अदालतों को होगी।
4. धारा 498A के अंतर्गत आने वाला मामला non -compoundable है,इसलिए जिला न्यायाधीश ऐसे मामलों में समझौता होने पर कार्यवाही को बंद नहीं कर सकता है। समझौता होने पर पक्षकारों को समझौते की अर्जी संबंधित हाई कोर्ट मैं लगानी होगी, और सीआरपीसी की धारा 482 के अनुसार हाईकोर्ट ही ऐसे मामलों में कार्यवाही को बंद करेगा।
5. दहेज का सामान मिलना ही जमानत की अर्जी को अस्वीकार करने का आधार नहीं होगा।